रुको ज़रा
न दिखा आइना, अक्स बिखरा हुआ
चला पड़ा हूँ मैं फिर उन्हीं राहों पे
तलाशे वजूद की ख़ातिर -
उभरती हैं दर्द की लकीरें, ज़िन्दगी का
हिसाब है ग़लतियों से भरा, इस्लाह
है मुश्किल, जिसे तू कहे
जाने महबूब वो कोई नहीं, है वहम मेरा
ये वही वाकिफ़ शख्स है जिसने
हर क़दम उलझाया मुझे
ताशिर में रह कर
भटकाया सहरा सहरा, मज़िल मंज़िल !
कहीं शायद रुकी है बारिश, हवाओं
में ज़िन्दगी का अहसास लगे,
न यहाँ है कोई मज़ार न
सदग़ कोई, लेकिन गूंजती हैं फिज़ाओं में
नन्हें बच्चों की किलकारियां,
खेलते हैं वो देर रात इन
चांदनी की परछाइयों
में कहीं लुकछुप, उनकी मासूम चेहरे में
ज़िन्दगी तलाशती है नाख़ुदा की
सूरत, नदी है गहरी बहुत
जाना है रौशनी के
शहर, रुको ज़रा की चूम लूँ उनके क़दम !
--- शांतनु सान्याल
इस्लाह - सुधार
नाख़ुदा - मल्लाह
सदग़- मंदिर
ताशिर- अंतर्मन
न दिखा आइना, अक्स बिखरा हुआ
चला पड़ा हूँ मैं फिर उन्हीं राहों पे
तलाशे वजूद की ख़ातिर -
उभरती हैं दर्द की लकीरें, ज़िन्दगी का
हिसाब है ग़लतियों से भरा, इस्लाह
है मुश्किल, जिसे तू कहे
जाने महबूब वो कोई नहीं, है वहम मेरा
ये वही वाकिफ़ शख्स है जिसने
हर क़दम उलझाया मुझे
ताशिर में रह कर
भटकाया सहरा सहरा, मज़िल मंज़िल !
कहीं शायद रुकी है बारिश, हवाओं
में ज़िन्दगी का अहसास लगे,
न यहाँ है कोई मज़ार न
सदग़ कोई, लेकिन गूंजती हैं फिज़ाओं में
नन्हें बच्चों की किलकारियां,
खेलते हैं वो देर रात इन
चांदनी की परछाइयों
में कहीं लुकछुप, उनकी मासूम चेहरे में
ज़िन्दगी तलाशती है नाख़ुदा की
सूरत, नदी है गहरी बहुत
जाना है रौशनी के
शहर, रुको ज़रा की चूम लूँ उनके क़दम !
--- शांतनु सान्याल
इस्लाह - सुधार
नाख़ुदा - मल्लाह
सदग़- मंदिर
ताशिर- अंतर्मन
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
खूबसूरत नज़्म
जवाब देंहटाएंnaman sah sangita di - regards
जवाब देंहटाएंमन की अथाह गहराइयों से आप सभी का शुक्रिया, एक अदने से शायर के हौसला अफज़ाई के लिए, नमन सह
जवाब देंहटाएंBahut sundar nazm ...
जवाब देंहटाएंMy Blog: Life is Just a Life
My Blog: My Clicks
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thanks beloved friend neeraj ji, sure,i will go through to your blog, have a nice day
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