आवाहन
वो राजपथ से बहते रुधिर धारे
क्लांत, कराह्तीं देवालय,
पाखंडों का पैशाचिक नृत्य
क्या यही है भरतवंशी तेरा अंत
फिर क्यूँ नहीं उठती शौर्य
की वो गंगन चुम्बित जयकारे,
हे ! नव प्रजन्म उठा शपथ
कोटि कोटि जन के परित्राण हेतु
कर कवच धारण,माँ भारती
करे आवाहन, हे! तुम्हें सनातनी,
हों एक धर्म रक्षार्थ सहस्त्र किनारे !
-- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
वो राजपथ से बहते रुधिर धारे
क्लांत, कराह्तीं देवालय,
पाखंडों का पैशाचिक नृत्य
क्या यही है भरतवंशी तेरा अंत
फिर क्यूँ नहीं उठती शौर्य
की वो गंगन चुम्बित जयकारे,
हे ! नव प्रजन्म उठा शपथ
कोटि कोटि जन के परित्राण हेतु
कर कवच धारण,माँ भारती
करे आवाहन, हे! तुम्हें सनातनी,
हों एक धर्म रक्षार्थ सहस्त्र किनारे !
-- शांतनु सान्याल
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