ये गुमां था वो चाहते हैं, हमें ज़िन्दगी से कहीं ज़्यादा
साँस रुकते ही सभी,वो ख़ुशी केअबहाम दूर होने लगे,
बामे हसरत पे शाम ढलते वो चिराग़ जलाना न भूले
ताबिशे रूह लरजती है,राहत ओ आराम दूर होने लगे,
मैंने ख़ुद ब ख़ुद ओढ़ ली है, तीरगी ए फ़रामोश शायद
लज्ज़ते मुहोब्बत, मरहले शाद, तमाम दूर होने लगे,
इक पल नज़र से दूर न होने की, ज़मानत थी बेमानी
रफ़्ता रफ़्ता यूँ, ज़िन्दगी से सुबहो शाम दूर होने लगे,
-- शांतनु सान्याल
अबहाम - कोहरा
बाम - पठार
ताबिश - चमक
मरहला - वक़्त
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