31 जुलाई, 2013

फिर उसी अंदाज़ से - -

ग़ैर मुन्तज़िर कोई ख़्वाब जो दे जाए 
सुलगते दिल को पुरअसर सुकूं,
फिर मुझे देख उसी निगाह 
ए हयात से, फिर 
मिल जाए 
मुझे 
दोबारा गुमशुदा नींद का पता, है रूह 
मज़तरब, जिस्म मजरूह, मिले 
फिर मुझे निजात, मुद्दतों 
के प्यासे जज़्बात 
से, वो लम्स 
जो कर 
जाए सूखे दरख़्त सदाबहार, फिर -
इक बार छू मेरा ज़मीर उसी 
तासीर ए बरसात से !
* * 
- शांतनु सान्याल 
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marianne-broome-artwork

29 जुलाई, 2013

दरमियां अपने - -

वो तख़लीक़ जो कर जाए रौशन,
स्याह ज़मीर, उभरे तहे दिल
से नेक जज़्बात, हर
चेहरे पे नज़र
आए -
नूर ए बरसात, छाए रहे वजूद -
पर दुआओं के साए, हर
सिम्त हो पुरसुकूं -
आलम, न
तेरा
चेहरा लगे अजनबी न मेरा अक्स
हो जाली, इक सदाक़त हो
दरमियां अपने, कि
तेरी ख़ामोश
दुआओं
में हो शामिल, मेरी भीगी आँखों -
की आमीन !
* *
- शांतनु सान्याल



26 जुलाई, 2013

निगाह महताबी - -

वो ख़ूबसूरत अहसास, जो हो मअतर तेरी 
आँखों की रौशनी से, फिर मुझे देख 
दोबारा निगाह महताबी से !
दश्त ए तन्हाई लिए 
जिगर में, फिर 
तलाश है 
इक ख़ानाबदोश बारिश की, मुख़्तसर ही -
सही, लेकिन बरस कुछ लम्हात 
मुक्कमल कामयाबी से !
इक प्यास है, ये 
ज़िन्दगी !
या कोई भटकती अधूरी ख़्वाहिश, या - - 
सुलगते अरमानों की गूंगी सदा, 
जो भी हो, कभी किसी 
दिन के लिए,
यूँ ही -
अपनापन तो दिखा पुरअसर बेताबी से !
* * 
- शांतनु सान्याल 

Artist Jacqueline Newbold
 

25 जुलाई, 2013

रुख़ तेरी परछाई का - -

आईना ए जहान मांगता है, मुझसे 
सबूत मेरी शनासाई का, कहाँ 
तक सुनाएं ये ज़िन्दगी,
दर्दे दास्तान तेरी 
बेवफ़ाई का,  
कभी तू उस किनारे सिमट जाए -
कभी तक़दीर हमें समेट ले 
अपने किनारे, नदी 
की मानिंद है 
इश्क़ 
तेरा, किसे बताएं रुख़ तेरी परछाई 
का - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 



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pink emotion

24 जुलाई, 2013

सारा जहां भूल गए - -

कुछ इस अंदाज़ से उसने ऐतमाद दिलाया, 
कि हम नीम बेहोशी में सारा जहां भूल गए,

भटकते रहे, यूँ सराब ए बियाबां की तरह -
अपने ही घर का, नाम ओ निशां भूल गए, 

उस रूह मरमोज़ की, थी अपनी ही शर्तें -
ज़द में आ, परवाज़ दर आसमां भूल गए, 

हद ए नज़र सिर्फ़ है, अब्र गर्द ओ ग़ुबार !
उसकी लगन में, वाक़िफ़ कारवां भूल गए,
* *
- शांतनु सान्याल 
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reflection - -

23 जुलाई, 2013

उफ़क़ के हमराह - -

उफ़क़ के हमराह उगते हैं कुछ रौशनी 
के पौधे, अफ़साना या हक़ीक़त 
जो भी हो मुझे ले चल, 
उसी जानिब 
जहाँ 
प्यासी रूहों को मिलती है तस्कीन ए 
मुक्कमल, तमाम फ़र्क़ जहाँ 
हो जाएँ बेमानी, न तू 
रहे सिर्फ़ तू, न 
मेरा वजूद 
हो मेरा,
इक ऐसी दुनिया जहाँ इंसानियत हो 
नूर हक़ीक़ी, बाक़ी सब कुछ 
फ़क़्त अहसास ए 
ख़याली !
* * 
- शांतनु सान्याल 
art by stella dunkley

22 जुलाई, 2013

झूलता पुल - -

कोई झूलता पुल है दरमियां अपने 
या उतरता ख़ुमार पिछले 
पहर का, वो मेरे 
दिल में हैं 
नुमाया या तासीर उनकी शोख़ -
नज़र का, वो मेरे रूबरू हैं 
या नशा किसी 
अनजान 
सहर का, जिस्म चांदनी और रूह 
संदली ! वो कोई पैकर ए 
ख़्वाब है या अक्स 
आसमानी -
शहर का !
* * 
- शांतनु सान्याल  
Unknown Artist quite dusk Painting

21 जुलाई, 2013

यकदिगर आशना फिर कभी - -

निगाहों से हो गुफ़्तगू, यकदिगर आशना फिर कभी,
 
बज़्म ए आसमान को, ज़रा और होने दो इशराक़ी,
हूँ ग़ुबार, कोई संग तिलिस्म, पहचानना फिर कभी,

ये वजूद है इसरार आमेज़, या कोई मुजस्मा ख़ाक -
रहने भी दो यूँ ख़्वाबआलूद, इसे अपनाना फिर कभी,

उस मोड़ से सभी रास्ते, न जाने कहाँ होते हैं गुम -
अभी तो हो हम नफ़स, वहां जाना आना फिर कभी,

निगाहों से हो गुफ़्तगू, यकदिगर आशना फिर कभी,
 * *
- शांतनु सान्याल
यकदिगर - परस्पर  इशराक़ी - उज्जवल

20 जुलाई, 2013

भूला न सके - -

राज़ ए वाबस्तगी वो कभी छुपा न सके,

भीड़ उनको यूँ घेरी रही हमेशा उम्र भर -
तन्हा दिल मगर किसी को दिखा न सके,

गुल खिले बहोत हस्ब मामूल हर तरफ़,
अहसास ए गुलदान दोबारा सजा न सके, 

हर मोड़ पे थे, कई नुक़ता ए मरासिम !
किसी से भी दोबारा, दिल मिला न सके, 

वो आज भी मुस्कुराते हैं बा चश्म मर्तूब 
चाह कर भी, तबाह गुलशन बसा न सके, 

ज़माना हुआ, रस्म रिहाई अब याद नहीं 
सुनते हैं, वो आज भी हमें भूला न सके !

राज़ ए वाबस्तगी वो कभी छुपा न सके,
* * 
- शांतनु सान्याल 

19 जुलाई, 2013

नज़र मिला - -

नज़र मिला कि फिर ये रंगीन ख़्वाब रहे न रहे,

उठ रहें हैं, पहाड़ों में धुंध के बादल रह रह कर,
किसे ख़बर ये जादुवी, हसीं माहताब रहे न रहे,

अभी तो है, हमारी वफ़ा सादिक़ ओ ख़ूबसूरत,
न जाने सुबह तलक यूँ ही लाजवाब रहे न रहे,

ये आईना भी है, हम पे फ़िदा दिल ओ जां से - 
कल किसने है देखा ये नूर ओ शबाब रहे न रहे,
* * 
- शांतनु सान्याल 

artist nora kasten

18 जुलाई, 2013

अंदरूनी शख्सियत - -

रुसवा है ज़माना तो रहे हमसे, इश्क़ में 
कामिल कायनात है नज़र के -
सामने, अब बढ़ चले 
क़दम कहकशां 
से आगे 
कहीं !
हर रंग ओ नूर हैं फ़िके उस बेमिशाल -
असर के सामने, वो मौजूद दर 
रूह गहराई, वो शामिल 
अंदरूनी शख्सियत,
बहोत मुश्किल 
है उसका 
अलहदा होना, हर एक संग ए साहिल 
है नाज़ुक शीशा, उस बेलगाम 
लहर के सामने - -
* * 
- शांतनु सान्याल 
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art dale-jackson

17 जुलाई, 2013

आख़िर इल्ज़ाम किसे दें - -

दग़ा दे जाए जब अपना ही साया, आख़िर 
इल्ज़ाम किसे दें, किनाराकशी थी 
उसकी बहोत ही ख़ूबसूरत,
टूटती रहीं दिल की 
धडकनें रह 
रह कर,
उसने कहा हमने तो दिल तेरा छुआ भी - 
नहीं, इस अदा पे कोई क्या करे,
वो मुस्कुराते हैं या चलते 
हैं तीर मकनून !
हम ख़ुद 
हैं मातबर इस दिलकश फ़रेब के, सोचते 
हैं अब कि, इनाम किसे दें ! 
* * 
- शांतनु सान्याल 

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art by EmilyMiller

16 जुलाई, 2013

गुज़िश्ता रात - -

अश्क अनमोल या क़तरा ए जज़्बात !
न जाने क्या थे वो सुलगते मोती,
बूंद बूंद गिरते रहे सीने पे 
तमाम रात, कोई 
आतफ़ी -
तुफ़ान गुज़रा है जिस्म ओ जां से हो 
कर यूँ गुज़िश्ता रात ! कि वजूद 
पूछता है अपने ही अक्स 
का ठिकाना, आईना 
भी है गुमसुम,
साया भी 
मेरा नज़र आए बेगाना, किस सिम्त 
न जाने लौट गयीं ख़्वाबों की 
बदलियाँ रात ढलते !
इक अहसास 
ए सहरा 
के सिवा मेरे दामन में अब कुछ नहीं, 
* * 
- शांतनु सान्याल 
dripping droplets - -

15 जुलाई, 2013

ग़ैर मुन्तज़िर - -

इक हौज़ ए शीशा है, उसकी मुहोब्बत,
तैरतीं हैं, जिस में मेरी चाहत की 
रंगीन मछलियाँ, ओढ़े हुए 
ख़्वाबों के पारदर्शी 
झीनी झीनी 
सी बदलियाँ, मेरी साँसों से जुड़ी हैं - - 
कहीं न कहीं उसकी धडकनें, 
जिस्म ओ जां में ढले 
हैं उसके सभी 
जज़्बाती
रंग, उसकी निगाहों की रौशनी से ही -  
मिलती है मुझे इक मुश्त ज़िन्दगी,
वो इश्क़ ए दरिया है अंतहीन -
गहरा, साहिल छूने की 
ख़्वाहिश न हो 
जाए कहीं 
ग़ैर मुन्तज़िर - - - - - - इक ख़ुदकुशी !
* * 
- शांतनु सान्याल
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art by van otterloo

13 जुलाई, 2013

पहाड़ियों के उस पार कहीं - -

पहाड़ियों के उस पार कहीं, है शायद सुबह 
का कोई रास्ता, हर शाम सूरज -
होता है गुम वहीँ से, न 
जाने क्यूँ उदास 
है साया 
मेरा, छोड़ जाता है मुझे तनहा शाम ढलने 
से बहोत पहले, इस ख़्वाहिश की भी
है अपनी अलग ख़ूबसूरती -
जो छूना भी चाहे 
उसे, और 
टूटने से घबराए, वो इश्क़ है या कोई - - - 
मरमोज़ गुलदान, दूर से जो दिखे 
शफ़ाफ़ ! लेकिन नज़दीक 
जाते ही बिखर जाए 
तार तार - - 
पुरतिलिस्म है ये शब या तेरी आँखों में 
कहीं, इक समंदर सिमटा हुआ !
* * 
- शांतनु सान्याल 


12 जुलाई, 2013

दरमियां अपने - -

ख़ौफ़ नहीं हमको इन अंधेरों से लेकिन -
कोई छुपके से हदफ़ बनाए तो 
क्या करें, वो क़ातिल 
निगाह अक्सर 
देती है 
फ़रेब मुझको, अपना आस्तीन ही धोखा 
ग़र दे जाए तो क्या करें, इस दौर 
के अपने ही हैं दस्तूर ओ 
आईन, चेहरा ही 
ख़ुद, इक 
नक़ाब ग़र बन जाए तो क्या करें, इतना 
अपनापन भी ठीक नहीं, कुछ तो 
फ़ासला रहे दरमियां अपने, 
कम से कम खंजर की 
चमक तो नज़र 
आए - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 

11 जुलाई, 2013

वहम ख़ूबसूरत - -

रहने भी दे बरक़रार ये वहम ख़ूबसूरत,
न उठा अभी से राज़ ए चिलमन !
ये सफ़र है बहोत तवील,
दुश्वारियां भी कम 
नहीं, किसे 
है फ़ुरसत कि देखें आईने में अक्स - - 
गुमशुदा, हर शख्स की अपनी 
है तरजीह फ़ेहरिस्त !
न जाने किस 
मरहले 
पे है तेरी मुहोब्बत खड़ी, लिए सीने पे 
इंतज़ार मख़सूस - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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09 जुलाई, 2013

नुक़ता ए आग़ाज़ - -

इन लम्हों की कशिश है जानलेवा, फिर भी 
मुझे जी लेने दे, कुछ देर और ज़रा !
रहने दे बेतरतीब, बिखरी हुई 
निगाहों की रौशनी, 
मद्धम ही -
सही
कुछ पल तो नज़र आये उन्वान ए ज़िन्दगी,
ये चाहत है कोई परिंदा दस्तगीर कि 
दरीचा क़फ़स है खुला सामने !
लेकिन वजूद भूल जाए 
उड़ना आसमां की 
ओर - - 
लौट आए बार बार नुक़ता ए आग़ाज़ की - - 
जानिब, बहुत मुश्किल है मुस्तक़ल 
रिहा होना - - 
* * 
- शांतनु सान्याल  
art by MKisling

06 जुलाई, 2013

कुछ ख़ास नहीं - -

कुछ ख़ास नहीं फिर भी दिल चाहता कुछ 
ख़ास कहना, न जाने कहाँ हैं बहारों 
की मंज़िल, मिले न मिले -
कोई ग़म नहीं, इक 
नदी है सिमटी 
सी तेरी 
आँखों में कहीं, मेरा वजूद है इक पत्ता - 
शाख़ से टूटा हुआ, तेरी पलकों 
के किनारे किनारे, चाहे 
यूँ ही दूर तक -
बहना !
कुछ ख़्वाब जो थे बहोत नाज़ुक, ग़र टूट 
गए तामीर से पहले, बुरा कुछ -
भी नहीं, कांच की अपनी 
है मज़बूरी, चाहत 
की छुअन 
थी बेसब्र बहोत, सजाने के पहले अगर -
गुलदान कोई हाथों से फिसल 
जाए तो क्या कीजिये !
फिर कभी, किसी 
भीगी रात 
में, गुल शबाना अपने दिल में सजाए - - 
रखना - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by David Adickes 1

01 जुलाई, 2013

रूह तक उतरो कभी - -

कभी हो सके तो मेरी रूह तक उतरो, काफ़ी 
नहीं लब छू कर, गहराई का अंदाज़ 
करना, आईने की भी अपनी 
हैं मजबूरियां ! आसां 
नहीं चेहरे की -
इबारत 
यूँ पढ़ना, तुम्हारी ख़्वाहिशों में है नुमायां -
लज़्ज़त ए बदन की महक, मेरी 
जुस्तजू में हैं शामिल 
ख़याल से परे 
नेमत 
बेशुमार ! ये वो चाहत है जिसे लफ़्ज़ों में - - 
बयां करना है नामुमकिन, इक 
जुनूं सूफ़ियाना, जो ले 
जाए वजूद, इक 
अजीब 
इसरार की जानिब, जो नाज़िल भी है और 
पोशीदा भी - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
art by annette winkler

वो दिल फ़रेब सही - -

वो दिल फ़रेब सही फिर भी देता है ज़िन्दगी 
को जीने के नए बहाने ! कभी दर्द -
हक़ीक़ी, कभी ख़्वाब आलूद 
अफ़साने ! हर मोड़ 
पे ऐ मुहोब्बत 
तू खड़ा 
है ख़ामोश, लिए भीगे आँखों में कई राज़ - - 
अनजाने, तुझे पाने की हसरत में 
कितनी सांसें हुई बोझिल,
कितने धड़कन टूटे 
न जाने, फिर 
भी इक 
जुनूं है जो दिल ओ जां में छाया हुआ, हर 
तरफ़ तेरी परस्तिश हर सिम्त 
तेरा जलवा, दरअसल 
तू है नाख़ुदा के 
शक्ल में 
कोई अहसास ए ख़ुदा ! वाबस्तगी है तुझ
से जीने मरने का, ये सच तू माने 
या न माने - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 

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