रुसवा है ज़माना तो रहे हमसे, इश्क़ में
कामिल कायनात है नज़र के -
सामने, अब बढ़ चले
क़दम कहकशां
से आगे
कहीं !
हर रंग ओ नूर हैं फ़िके उस बेमिशाल -
असर के सामने, वो मौजूद दर
रूह गहराई, वो शामिल
अंदरूनी शख्सियत,
बहोत मुश्किल
है उसका
अलहदा होना, हर एक संग ए साहिल
है नाज़ुक शीशा, उस बेलगाम
लहर के सामने - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/art dale-jackson
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें