कुछ ख़ास नहीं फिर भी दिल चाहता कुछ
art by David Adickes 1
ख़ास कहना, न जाने कहाँ हैं बहारों
की मंज़िल, मिले न मिले -
कोई ग़म नहीं, इक
नदी है सिमटी
सी तेरी
आँखों में कहीं, मेरा वजूद है इक पत्ता -
शाख़ से टूटा हुआ, तेरी पलकों
के किनारे किनारे, चाहे
यूँ ही दूर तक -
बहना !
कुछ ख़्वाब जो थे बहोत नाज़ुक, ग़र टूट
गए तामीर से पहले, बुरा कुछ -
भी नहीं, कांच की अपनी
है मज़बूरी, चाहत
की छुअन
थी बेसब्र बहोत, सजाने के पहले अगर -
गुलदान कोई हाथों से फिसल
जाए तो क्या कीजिये !
फिर कभी, किसी
भीगी रात
में, गुल शबाना अपने दिल में सजाए - -
रखना - -
* *
- शांतनु सान्याल
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