उफ़क़ के हमराह उगते हैं कुछ रौशनी
के पौधे, अफ़साना या हक़ीक़त
जो भी हो मुझे ले चल,
उसी जानिब
जहाँ
प्यासी रूहों को मिलती है तस्कीन ए
मुक्कमल, तमाम फ़र्क़ जहाँ
हो जाएँ बेमानी, न तू
रहे सिर्फ़ तू, न
मेरा वजूद
हो मेरा,
इक ऐसी दुनिया जहाँ इंसानियत हो
नूर हक़ीक़ी, बाक़ी सब कुछ
फ़क़्त अहसास ए
ख़याली !
* *
- शांतनु सान्याल
art by stella dunkley
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