अश्क अनमोल या क़तरा ए जज़्बात !
न जाने क्या थे वो सुलगते मोती,
बूंद बूंद गिरते रहे सीने पे
तमाम रात, कोई
आतफ़ी -
तुफ़ान गुज़रा है जिस्म ओ जां से हो
कर यूँ गुज़िश्ता रात ! कि वजूद
पूछता है अपने ही अक्स
का ठिकाना, आईना
भी है गुमसुम,
साया भी
मेरा नज़र आए बेगाना, किस सिम्त
न जाने लौट गयीं ख़्वाबों की
बदलियाँ रात ढलते !
इक अहसास
ए सहरा
के सिवा मेरे दामन में अब कुछ नहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
dripping droplets - -
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