कुछ इस अंदाज़ से उसने ऐतमाद दिलाया,
reflection - -
कि हम नीम बेहोशी में सारा जहां भूल गए,
भटकते रहे, यूँ सराब ए बियाबां की तरह -
अपने ही घर का, नाम ओ निशां भूल गए,
उस रूह मरमोज़ की, थी अपनी ही शर्तें -
ज़द में आ, परवाज़ दर आसमां भूल गए,
हद ए नज़र सिर्फ़ है, अब्र गर्द ओ ग़ुबार !
उसकी लगन में, वाक़िफ़ कारवां भूल गए,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/reflection - -
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