24 जुलाई, 2013

सारा जहां भूल गए - -

कुछ इस अंदाज़ से उसने ऐतमाद दिलाया, 
कि हम नीम बेहोशी में सारा जहां भूल गए,

भटकते रहे, यूँ सराब ए बियाबां की तरह -
अपने ही घर का, नाम ओ निशां भूल गए, 

उस रूह मरमोज़ की, थी अपनी ही शर्तें -
ज़द में आ, परवाज़ दर आसमां भूल गए, 

हद ए नज़र सिर्फ़ है, अब्र गर्द ओ ग़ुबार !
उसकी लगन में, वाक़िफ़ कारवां भूल गए,
* *
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
reflection - -

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