29 जुलाई, 2013

दरमियां अपने - -

वो तख़लीक़ जो कर जाए रौशन,
स्याह ज़मीर, उभरे तहे दिल
से नेक जज़्बात, हर
चेहरे पे नज़र
आए -
नूर ए बरसात, छाए रहे वजूद -
पर दुआओं के साए, हर
सिम्त हो पुरसुकूं -
आलम, न
तेरा
चेहरा लगे अजनबी न मेरा अक्स
हो जाली, इक सदाक़त हो
दरमियां अपने, कि
तेरी ख़ामोश
दुआओं
में हो शामिल, मेरी भीगी आँखों -
की आमीन !
* *
- शांतनु सान्याल



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past