13 जुलाई, 2013

पहाड़ियों के उस पार कहीं - -

पहाड़ियों के उस पार कहीं, है शायद सुबह 
का कोई रास्ता, हर शाम सूरज -
होता है गुम वहीँ से, न 
जाने क्यूँ उदास 
है साया 
मेरा, छोड़ जाता है मुझे तनहा शाम ढलने 
से बहोत पहले, इस ख़्वाहिश की भी
है अपनी अलग ख़ूबसूरती -
जो छूना भी चाहे 
उसे, और 
टूटने से घबराए, वो इश्क़ है या कोई - - - 
मरमोज़ गुलदान, दूर से जो दिखे 
शफ़ाफ़ ! लेकिन नज़दीक 
जाते ही बिखर जाए 
तार तार - - 
पुरतिलिस्म है ये शब या तेरी आँखों में 
कहीं, इक समंदर सिमटा हुआ !
* * 
- शांतनु सान्याल 


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