पहाड़ियों के उस पार कहीं, है शायद सुबह
का कोई रास्ता, हर शाम सूरज -
होता है गुम वहीँ से, न
जाने क्यूँ उदास
है साया
मेरा, छोड़ जाता है मुझे तनहा शाम ढलने
से बहोत पहले, इस ख़्वाहिश की भी
है अपनी अलग ख़ूबसूरती -
जो छूना भी चाहे
उसे, और
टूटने से घबराए, वो इश्क़ है या कोई - - -
मरमोज़ गुलदान, दूर से जो दिखे
शफ़ाफ़ ! लेकिन नज़दीक
जाते ही बिखर जाए
तार तार - -
पुरतिलिस्म है ये शब या तेरी आँखों में
कहीं, इक समंदर सिमटा हुआ !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
alone man
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