आईना ए जहान मांगता है, मुझसे
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सबूत मेरी शनासाई का, कहाँ
तक सुनाएं ये ज़िन्दगी,
दर्दे दास्तान तेरी
बेवफ़ाई का,
कभी तू उस किनारे सिमट जाए -
कभी तक़दीर हमें समेट ले
अपने किनारे, नदी
की मानिंद है
इश्क़
तेरा, किसे बताएं रुख़ तेरी परछाई
का - -
* *
- शांतनु सान्याल
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