वो दिल फ़रेब सही फिर भी देता है ज़िन्दगी
को जीने के नए बहाने ! कभी दर्द -
हक़ीक़ी, कभी ख़्वाब आलूद
अफ़साने ! हर मोड़
पे ऐ मुहोब्बत
तू खड़ा
है ख़ामोश, लिए भीगे आँखों में कई राज़ - -
अनजाने, तुझे पाने की हसरत में
कितनी सांसें हुई बोझिल,
कितने धड़कन टूटे
न जाने, फिर
भी इक
जुनूं है जो दिल ओ जां में छाया हुआ, हर
तरफ़ तेरी परस्तिश हर सिम्त
तेरा जलवा, दरअसल
तू है नाख़ुदा के
शक्ल में
कोई अहसास ए ख़ुदा ! वाबस्तगी है तुझ
से जीने मरने का, ये सच तू माने
या न माने - -
* *
- शांतनु सान्याल
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