कभी हो सके तो मेरी रूह तक उतरो, काफ़ी
नहीं लब छू कर, गहराई का अंदाज़
करना, आईने की भी अपनी
हैं मजबूरियां ! आसां
नहीं चेहरे की -
इबारत
यूँ पढ़ना, तुम्हारी ख़्वाहिशों में है नुमायां -
लज़्ज़त ए बदन की महक, मेरी
जुस्तजू में हैं शामिल
ख़याल से परे
नेमत
बेशुमार ! ये वो चाहत है जिसे लफ़्ज़ों में - -
बयां करना है नामुमकिन, इक
जुनूं सूफ़ियाना, जो ले
जाए वजूद, इक
अजीब
इसरार की जानिब, जो नाज़िल भी है और
पोशीदा भी - -
* *
- शांतनु सान्याल
art by annette winkler
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