इक हौज़ ए शीशा है, उसकी मुहोब्बत,
तैरतीं हैं, जिस में मेरी चाहत की
रंगीन मछलियाँ, ओढ़े हुए
ख़्वाबों के पारदर्शी
झीनी झीनी
सी बदलियाँ, मेरी साँसों से जुड़ी हैं - -
कहीं न कहीं उसकी धडकनें,
जिस्म ओ जां में ढले
हैं उसके सभी
जज़्बाती
रंग, उसकी निगाहों की रौशनी से ही -
मिलती है मुझे इक मुश्त ज़िन्दगी,
वो इश्क़ ए दरिया है अंतहीन -
गहरा, साहिल छूने की
ख़्वाहिश न हो
जाए कहीं
ग़ैर मुन्तज़िर - - - - - - इक ख़ुदकुशी !
* *
art by van otterloo
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