इन लम्हों की कशिश है जानलेवा, फिर भी
मुझे जी लेने दे, कुछ देर और ज़रा !
रहने दे बेतरतीब, बिखरी हुई
निगाहों की रौशनी,
मद्धम ही -
सही
कुछ पल तो नज़र आये उन्वान ए ज़िन्दगी,
ये चाहत है कोई परिंदा दस्तगीर कि
दरीचा क़फ़स है खुला सामने !
लेकिन वजूद भूल जाए
उड़ना आसमां की
ओर - -
लौट आए बार बार नुक़ता ए आग़ाज़ की - -
जानिब, बहुत मुश्किल है मुस्तक़ल
रिहा होना - -
* *
- शांतनु सान्याल
art by MKisling
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