बुधवार, 28 जुलाई 2010
परिचय
परिचय
एक विस्तृत महासंस्कृति बृहत् नभ सम-
वेदों से उज्जवलित, अग्निशिखा प्रिय देश मम,
महासिंधु सम गहरा अज्ञात जिसका उद्गम
पूर्ण ब्रम्हांड अंतर्निहित,सुहृदय प्रिय देश मम,
-- शांतनु सान्याल
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अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
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मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
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जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
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उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
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शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
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दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
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नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
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बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
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वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
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ख़्वाहिशों का यूँ भी कोई किनारा नहीं होता, इक बेमौज नदी है, कोई बेसदा बहती हुई - डूबनेवाले का यहाँ कोई भी सहारा नहीं होता। जब आग लगी...
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ज़िन्दगी की ज्यामिति इतनी भी मुश्किल नहीं कि जिसे ढूंढे हम, हाथ की लकीरों में। तुम्हारे शहर में यूँ तो हर चीज़ है ग़ैर मामूली, मगर अपना दिल ...
