05 जनवरी, 2021

अस्तित्व परिधि - -

दावा रहित उस सीमान्त रेखा में कहीं,
गिरते हैं टूटे हुए तारे, मुंडेर से
उतरती चाँदनी, कुछ पल
के लिए रूकती है, यूँ
ही, उस बोगन -
वेलिया के
किनारे,
एक
गहरा स्पर्श, जो उतरता है आहिस्ता-
आहिस्ता, सुप्त चेतना के भीतर,
सहसा जागते हैं, अनगिनत
ऊसर प्रदेश, सुदूर कहीं
आदिम घड़ी के घंटे
करते हैं, मध्य -
रात्रि का
ऐलान,
उस रहस्यमय नीरवता की गहराई में,
असंख्य तिर्यक समीकरण करते
हैं प्रवेश। दिगंत रेखा में कहीं
उभरते हैं, रंग मशालों के
धूम्र वलय, अशांत
रात ढलने से
पूर्व रख
जाती
है, कुछ चाँदनी के कण, कुछ शबनमी -
अहसास, कुछ बूंद परकीय गंध,
कुछ गहरा अंतरंग मिठास,
एक असमाप्त जीवन -
बोध, अस्तित्व
वृत्त के
आसपास।

* *
- - शांतनु सान्याल
     



10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 06 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. प्राकृति के महाकरे रँगों से बुनी रचना ...
    बहुत लाजवाब ...

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