तृष्णा पार की अनुभूतियों में, अब
भी बाक़ी हैं कुछ मृग मरीचिका,
खिड़की पार की दुनिया में
तैरते हैं, कुछ पारदर्शी
शब्द, धुंध की
गहराइयों
में वो
खोजते हैं गिरते हुए बूंदों की भाषा,
सहसा, वो सभी अधूरी चाहतें
हो जाती हैं, गहन रात की
निर्भीक नायिका, अब
भी बाक़ी हैं जीवन
में, कुछ मृग -
मरीचिका।
सारे देह
में
उभरते हैं, तित्तिभ के नील रंगी
आलोक, कोई रख जाता है
चुपचाप, नीम के कुछ
पत्ते, मृत तितली
के सिरहाने,
जीवन
के
प्रयोगशाला में अचानक जागती है
अंतिम पहर की, अदृश्य कोई
अभिसारिका, अब भी
बाक़ी हैं, रात के
मरू वक्षस्थल
में, कुछ
रंगीन
मृग मरीचिका। मैं दोनों हाथ बढ़ाता
हूँ की छू सकूँ, अभिशाप मुक्त
अनुभूति को, पुनः उड़ा पाऊं
झरित पंखों की स्मृति
को, लेकिन जैसा
हम चाहते हैं
वैसा कहाँ
होता है,
बहुत जल्दी खिड़की के उस पार गिर
जाते हैं धुंध के यवनिका, अब
पहले से कहीं अधिक गाढ़
हो चले हैं, अंधकार
पलों के मृग -
मरीचिका।
* *
- - शांतनु सान्याल
01 जनवरी, 2021
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नव वर्ष मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (03-01-2021) को "हो सबका कल्याण" (चर्चा अंक-3935) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
नववर्ष-2021 की मंगल कामनाओं के साथ-
हार्दिक शुभकामनाएँ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
03/01/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएंअनूठापन है रचना में ...
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएंकमाल की रचना ... गहरा एहसास लिए ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष मंगलमय हो ...
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएंआपकी रचना पढ़कर सिहरन सी होती है
जवाब देंहटाएंतित्तिभ के नील रंगी
आलोक, कोई रख जाता है
चुपचाप, नीम के कुछ
पत्ते, मृत तितली
–उफ्फ्फ
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंगज़ब व्यंजना होती है आपकी मुग्ध करता सृजन।
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आपको एवं आपके समस्त परिवार को।
सादर।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
वाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति