04 जनवरी, 2021

विस्मित पल - -

अंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
जीवन का उत्स, चाहे जितनी
गहरी हो मायावी रात्रि,
कुहासा चीर कर
निकल ही
आते
हैं, हर हाल में आलोक पथ के यात्री।
इस एकसुरा जीवन के बाहर भी
है एक भिन्न जगत, कुछ
सुरभित भावों की
वीथिका, कुछ
अंतरतम
की
गहराई, सब मिला कर वो अनाविल
सुंदरता, हालांकि सीने की तृषा
रहती है अतृप्त हमेशा,
अन्तःदहन के बाद
ही नव सृजन
करती है
मुलायम मृत्तिका, इस विषम पथ
में ही हैं, कुछ मुकुलित भावों
की वीथिका। अधूरेपन में
ही है जीने की अदम्य
अभिलाषा, जो
जोड़े रखती
है रूहों
को
इस किनारे से उस किनारे तक, उस
अदृश्य सेतु बंधन में हैं शामिल,
कम्पित अधरों के तिर्यक
सुख, व्यथित देह -
प्राण में राहत
का मरहम
ज़रा सा,
अधूरेपन में ही है, जीने की अदम्य
अभिलाषा।

* *
- - शांतनु सान्याल


   



16 टिप्‍पणियां:

  1. अंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
    जीवन का उत्स, चाहे जितनी
    गहरी हो मायावी रात्रि,
    बहुत खूब...अत्यन्त सुन्दर और प्रेरक भाव।

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  2. इस एकसुरा जीवन के बाहर भी
    है एक भिन्न जगत, कुछ सुरभित भावों की वीथिका, कुछ अंतरतम की गहराई, सब मिला कर वो अनाविल
    सुंदरता, हालांकि सीने की तृषा रहती है अतृप्त हमेशा, अन्तःदहन के बाद ही नव सृजन
    करती है....
    अत्यंत गूढ़ जीवन दर्शन को कितने सरलतम तरीके से लिख डाला है आपने। अचंभित कर देने की आपकी कला को नमन।।।।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 05 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. इस एकसुरा जीवन के बाहर भी
    है एक भिन्न जगत, कुछ
    सुरभित भावों की
    वीथिका,
    बहुत सटीक ... सुन्दर ...
    सारगर्भित सृजन।

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  5. अंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
    जीवन का उत्स, चाहे जितनी
    गहरी हो मायावी रात्रि,
    कुहासा चीर कर
    निकल ही
    आते
    हैं, हर हाल में आलोक पथ के यात्री..सुन्दर सारगर्भित पन्क्तियाँ अभिव्यक्ति..शानदार रचना..

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  6. अंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
    जीवन का उत्स, चाहे जितनी
    गहरी हो मायावी रात्रि,
    कुहासा चीर कर
    निकल ही
    आते
    हैं, हर हाल में आलोक पथ के यात्री।
    बहुत बहुत सुन्दर

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