अंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
जीवन का उत्स, चाहे जितनी
गहरी हो मायावी रात्रि,
कुहासा चीर कर
निकल ही
आते
हैं, हर हाल में आलोक पथ के यात्री।
इस एकसुरा जीवन के बाहर भी
है एक भिन्न जगत, कुछ
सुरभित भावों की
वीथिका, कुछ
अंतरतम
की
गहराई, सब मिला कर वो अनाविल
सुंदरता, हालांकि सीने की तृषा
रहती है अतृप्त हमेशा,
अन्तःदहन के बाद
ही नव सृजन
करती है
मुलायम मृत्तिका, इस विषम पथ
में ही हैं, कुछ मुकुलित भावों
की वीथिका। अधूरेपन में
ही है जीने की अदम्य
अभिलाषा, जो
जोड़े रखती
है रूहों
को
इस किनारे से उस किनारे तक, उस
अदृश्य सेतु बंधन में हैं शामिल,
कम्पित अधरों के तिर्यक
सुख, व्यथित देह -
प्राण में राहत
का मरहम
ज़रा सा,
अधूरेपन में ही है, जीने की अदम्य
अभिलाषा।
* *
- - शांतनु सान्याल
04 जनवरी, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
उस अदृश्य कुम्हार के दिल में, जाने क्या था फ़लसफ़ा, चाहतों के खिलौने टूटते रहे, सजाया उन्हें जितनी दफ़ा, वो दोपहर की - - धूप थी कोई मुंडेरों से...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
अंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
जवाब देंहटाएंजीवन का उत्स, चाहे जितनी
गहरी हो मायावी रात्रि,
बहुत खूब...अत्यन्त सुन्दर और प्रेरक भाव।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंइस एकसुरा जीवन के बाहर भी
जवाब देंहटाएंहै एक भिन्न जगत, कुछ सुरभित भावों की वीथिका, कुछ अंतरतम की गहराई, सब मिला कर वो अनाविल
सुंदरता, हालांकि सीने की तृषा रहती है अतृप्त हमेशा, अन्तःदहन के बाद ही नव सृजन
करती है....
अत्यंत गूढ़ जीवन दर्शन को कितने सरलतम तरीके से लिख डाला है आपने। अचंभित कर देने की आपकी कला को नमन।।।।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंनव वर्ष मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 05 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंइस एकसुरा जीवन के बाहर भी
जवाब देंहटाएंहै एक भिन्न जगत, कुछ
सुरभित भावों की
वीथिका,
बहुत सटीक ... सुन्दर ...
सारगर्भित सृजन।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंअंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
जीवन का उत्स, चाहे जितनी
गहरी हो मायावी रात्रि,
कुहासा चीर कर
निकल ही
आते
हैं, हर हाल में आलोक पथ के यात्री..सुन्दर सारगर्भित पन्क्तियाँ अभिव्यक्ति..शानदार रचना..
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंअंधकार के गर्भ में ही छुपा होता है
जवाब देंहटाएंजीवन का उत्स, चाहे जितनी
गहरी हो मायावी रात्रि,
कुहासा चीर कर
निकल ही
आते
हैं, हर हाल में आलोक पथ के यात्री।
बहुत बहुत सुन्दर
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं