कोई बहाना चलो खोंजे, मधुमास की
वापसी में है, बहुत देर अभी, इक
अहसास जो भर जाए रिक्त
ह्रदय में हरित स्पर्श,
फिर है मुझे
तेरी
आँखों में कोई तलाश, किसी रास्ते में
यूँ ही चलें दूर तक, शायद कहीं न
कहीं मिल जाए ओस की
बूंदों का लापता
ठिकाना
या
कहीं से इक टुकड़ा सजल मेघ, उड़ -
आए, और कर जाए सिक्त
तृषित अंतरतम, चलो
खेलें बचपन के
विस्मृत
खेल,
फिर बाँध जाओ, स्नेह भरे हाथों से
मेरी आँखों में अपने आँचल की
छाँव, और दो आवाज़
धुंध भरी वादियों
से बार बार,
कुछ
तो जीवन में आये पुनः आवेग तुम्हें
नज़दीक से छूने की - -
* *
- शांतनु सान्याल
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंवाह!सुन्दर सृजन शान्तनु जी ।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
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