11 सितंबर, 2023

प्रवाहमान - -

रुख़्सत हो चुका अदृश्य तूफ़ान,
साहिल पे छोड़ कर बर्बादी के
निशान, फिर लौट आएंगे
इक दिन बेघर परिंदे,
मौसम बदलते
ही खुल
जाएगा बंद ख़्वाबों का आसमान,
पुनः लगेंगे नदी किनारे मेले,
बूढ़े बरगद की शाखों में
फिर सजेंगे नए घरौंदे,
ऋतु चक्र कभी
रुकता नहीं,
किसी
के रहने या न रहने से कारोबार ए
दुनिया थमता नहीं, मंदिर के
सांध्य प्रदीप के साथ ही
सुबह का होता है
नया आह्वान,
कोई न
कोई
रहता है अदृश्य तत्पर ख़ाली स्थान
भरने के लिए, ज़िन्दगी पूरा
मौक़ा देती है बिखर कर
दोबारा संवरने के लिए,
नदी के जलधार सदा
रहते हैं प्रवाहमान ।
रुख़्सत हो चुका
अदृश्य तूफ़ान,
साहिल पे
छोड़
कर बर्बादी के निशान ।
- शांतनु सान्याल 

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २१ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. फिर लौट आएंगें एक दिन बेघर परिंदे ,फिर सकेगें नए घरौंदे .....वाह बहुत खूब!!!

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  3. जीवन इसी आवागमन का नाम है

    जवाब देंहटाएं

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