सारा शहर भीगा, रस्ते घाट भीगे,
कपोत काग भीगे, झरोखों
से लिपटे उजालों के
याद भीगे, बहुत
अंदर है कोई
गंधक का
खदान,
न बुझे न ही परिपूर्ण सुलगे बस
दूर तक धुंआ सा उठे, सभी
सीमाबद्ध हैं अपने ही
दायरों में, कैसा
लेना देना,
कोई
सोए इस तरह की उम्र भर न -
जगे, कभी सजल लम्हों
में उतरती रही रोशनी
तेरी निगाह से,
कभी तेरी
आंखों
में बहुत धुंधला सा आसमां लगे,
मैंने पूछा है तेरा पता डूबते
तारों से, उभरते सुबह
के उजालों से,
कभी तू
है मेरे
मुट्ठी में तितली की मख़मली - -
एहसास लिए कभी
गुमशुदा मशालों
का कारवां
लगे,
छप्पर के किसी छेद से उतरती
है वो ख़ुशी, कुछ पलों के लिए
ही सही तू मेरी हथेलियों
में ठहरे हुए विद्रोह
का निगहेबां
लगे ।
* *
- - शांतनु सान्याल
24 सितंबर, 2020
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ सितंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
तहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंकुछ पलों के लिए
ही सही तू मेरी हथेलियों
में ठहरे हुए विद्रोह
का निगहेबां
लगे ।
तहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंस्पर्शी रचना - बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंशब्दो को संजोना आकर्षित करता है
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहि ही लाजवाब
अद्भुत शब्द संयोजन
तहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
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