जन अरण्य में न जाने कितने
हिंस्र पशु घूम रहे लगाए
घात, दबंगों के हाथ
में है हर घर की
चाबी, और
आप
करते हैं राम राज्य की बात ।
शंख, थाली, या हो दीप -
झुनझुना, सब वृथा
न रोक पाए
नियति
के
मार को, वो है या नहीं, बस
सोचने की बात है, कठिन
है बहुत अनसुना करना
लेकिन किवाड़ के
प्रहार को ।
मोम -
बत्ती वाले भी अपने और पराए
में अंधकार तलाश करते हैं,
हासिए से उभर कर
शीर्षक की आस
करते हैं ।
वो संस्कृति, सभ्यता में एक ही
ख़ास रंग चाहें, लहू का रंग
तो लेकिन एक ही है कौन
उन्हें समझाए, मेरे घर
से दूर नहीं उनका
घर, इतना
दूरत्व
ठीक नहीं कि मिल के भी मिल
न पाएँ ।
* *
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका अमूल्य मंतव्य प्रेरणा का स्रोत है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
आपका अमूल्य मंतव्य प्रेरणा का स्रोत है - - नमन सह।
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