21 सितंबर, 2020

निहत भावनाओं की कथा - -

उथले आसमान में फिर एक धूसर दिन
की है शुरुआत, कुछ अदृश्य नंगे
पाँव करते हैं अठखेली, कोई
अदृश्य नक्षत्र फेंकता
है रंगीन पाशा,
मेरे एक
हाथ
में है निषूदक डोरी, दूसरे हाथ शून्यप्राय
शिशु औषध की शीशी, देखता हूँ
डूब रहें हैं सभी, न उभरने के
लिए, सूरजमुखी के पौधे
हैं विभ्रांत, दिशाहारा
सूर्य की भाषा,
कुछ
कुम्हलाए पत्ते, हंसने की चाह में उठाना
चाहें उतरनों की दिलासा, उंगली
की नोक में है कांच की चुभन,
चूस लेंगे हम यथापूर्व
मरती नहीं मारे
जीवन की
आशा।
* *
- - शांतनु सान्याल
 
 
 


 


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