07 सितंबर, 2020

खुली हथेलियां का सच - -

वे तमाम लोग थे तमाशबीन,
भीड़ को हटा कर जो मेरी
तरफ आगे बढ़ा, वो
दोस्त ही मेरा
क़ातिल
निकला, तुम्हारे पूर्वकथन पर -
मैंने ज़रूरत से ज़्यादा यक़ीन
किया, अगाध सम्भ्रम
की वजह से मेरा
साया, डूबता
हुआ
साहिल निकला, वो दोस्त ही -
मेरा क़ातिल निकला। जिसे
लोग अक्सर नाकारा
समझते थे, वही
मंदिर के
दान -
पेटी का चमकता हुआ सितारा
निकला, दरअसल पीतल
और सोने में फ़र्क़ की
लकीर, बहुत ही
महीन
होती है, वो शख़्स जो उम्र भर
हाथ बढ़ाता रहा जीने के
लिए, सांस रुकने के
बाद, उसके ही
सिरहाने
बेशुमार सिक्के वाला पिटारा
निकला, दान पेटी का
चमकता हुआ
सितारा
निकला। बहोत दूर आ चुके हैं
हम, इसके बाद चाहत की
इंतहा लाज़िम है, कुछ
और रहे बाक़ी,
सफ़र हो,
या खुली
हथेलियां, कुछ और दुआओं के  -
इम्तहां लाज़िम है।
 * *
- - शांतनु सान्याल

 
 

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