मेरी प्रतीक्षा नहीं करना, मैं गुम हूँ
जनस्रोत में कहीं, किसी लुप्त
बचपन की तरह, खो
चुका हूँ मैं किसी
नामविहीन
शिल्पी
की
खड़िया चित्रों में देवी विसर्जन की
तरह, न ढूँढना मुझे किसी
स्टेशन के प्लेटफॉर्म
में, आख़री ट्रेन
कब की
जा
चुकी, मैं जहाँ हूँ वहीँ रहने दो मुझे
किसी दावी विहीन देवार्पण
की तरह, न जाने क्या
कहते हैं उसे जादू -
नलिका या
अंग्रेज़ी
में केलिडोस्कोप, न दिखाओ मुझे
मेरा धूसर चेहरा, यूँ जोड़ तोड़
के, रंगीन चूड़ियों के
किसी घूमते
दर्पण की
तरह।
* *
- - शांतनु सान्याल
जनस्रोत में कहीं, किसी लुप्त
बचपन की तरह, खो
चुका हूँ मैं किसी
नामविहीन
शिल्पी
की
खड़िया चित्रों में देवी विसर्जन की
तरह, न ढूँढना मुझे किसी
स्टेशन के प्लेटफॉर्म
में, आख़री ट्रेन
कब की
जा
चुकी, मैं जहाँ हूँ वहीँ रहने दो मुझे
किसी दावी विहीन देवार्पण
की तरह, न जाने क्या
कहते हैं उसे जादू -
नलिका या
अंग्रेज़ी
में केलिडोस्कोप, न दिखाओ मुझे
मेरा धूसर चेहरा, यूँ जोड़ तोड़
के, रंगीन चूड़ियों के
किसी घूमते
दर्पण की
तरह।
* *
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका अमूल्य मंतव्य प्रेरणा का स्रोत है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
आपका अमूल्य मंतव्य प्रेरणा का स्रोत है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (०६-०९-२०२०) को 'उजाले पीटने के दिन थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था' (चर्चा अंक-३८१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
आपका आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएं, न दिखाओ मुझे
जवाब देंहटाएंमेरा धूसर चेहरा, यूँ जोड़ तोड़
के, रंगीन चूड़ियों के
किसी घूमते
दर्पण की
तरह।
बेहतरीन रचना।
आपका आभार, नमन सह।
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