04 सितंबर, 2020

जादू नलिका - -

मेरी प्रतीक्षा नहीं करना, मैं गुम हूँ
जनस्रोत में कहीं, किसी लुप्त
बचपन की तरह, खो
चुका हूँ मैं किसी
नामविहीन
शिल्पी
की
खड़िया चित्रों में देवी विसर्जन की
तरह, न ढूँढना मुझे किसी
स्टेशन के प्लेटफॉर्म
में, आख़री ट्रेन
कब की
जा
चुकी, मैं जहाँ हूँ वहीँ रहने दो मुझे
किसी दावी विहीन देवार्पण
की तरह, न जाने क्या
कहते हैं उसे जादू -
नलिका या
अंग्रेज़ी
में केलिडोस्कोप, न दिखाओ मुझे
मेरा धूसर चेहरा, यूँ जोड़ तोड़
के, रंगीन चूड़ियों के
किसी घूमते
दर्पण की
तरह।

* *
- - शांतनु सान्याल



12 टिप्‍पणियां:

  1. आपका अमूल्य मंतव्य प्रेरणा का स्रोत है - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका अमूल्य मंतव्य प्रेरणा का स्रोत है - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (०६-०९-२०२०) को 'उजाले पीटने के दिन थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था' (चर्चा अंक-३८१६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  5. , न दिखाओ मुझे
    मेरा धूसर चेहरा, यूँ जोड़ तोड़
    के, रंगीन चूड़ियों के
    किसी घूमते
    दर्पण की
    तरह।
    बेहतरीन रचना।

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past