कभी स्थिर पलों में, बहुत कुछ कहने
की चाह में, कांपते हैं होंठ, कभी
बहुत कुछ कहने के बाद भी
रह जाती है, दिल की
बात दिल में,
कभी
निगाहों में उभरते हैं महीन बादलों के
कण, कभी डूब जाती हैं पलकें
अपने ही साहिल में। कोई
नहीं रुकता किसी के
लिए, ज़िन्दगी
का सफ़र
किसी
ख़्वाब ए दरख़्त से कम नहीं, दूर से
देखो तो वादी ए नील नज़र आए,
क़रीब पहुंचो तो उष्ण बालू
का है टीला, माया मृग
की तरह दौड़ता
रहता है
ख़्वाहिशों का ये बेलगाम सिलसिला।
चाहते हो मुझे छूना, नज़दीक
से अनुभव करना, अपनी
हथेलियों में रखना,
कुछ पलों का
सुख, ये
जान के भी, मामूली सा बुलबुला हूँ -
पानी का, रख लो मुझे जहाँ
चाहे, तुम्हारी हो मर्ज़ी,
न हो जाए पटाक्षेप
पलक झपकते,
मेरी रंगीन
कहानी
का।
मामूली सा बुलबुला हूँ पानी का - - -
* *
- - शांतनु सान्याल
23 सितंबर, 2020
क्षणिक सुख - -
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सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-09-2020) को "मत कहो, आकाश में कुहरा घना है" (चर्चा अंक-3835) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
तहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं