धुंधभरे जिल्द की किताब को रख दो
कहीं कांच की अलमारी में बंद,
जीवन की वास्तविकता
ग़र जानना हो
तो मिलो
उस
अंधकार गली के किसी मोड़ पर जहाँ
शैशव एक ही रात में पहुँच जाता
है पूर्ण वयस्कता की ओर,
सूर्य की प्रथम किरण
में खिलने की
चाह
असमय ही मर जाती है सीने के - -
बहुत अंदर, श्वासरुद्ध और
धुंएँ के मध्य कहीं
जीवन करता
है मौन
संधि,
परस्पर जहाँ शिकायत की कोई भी
जगह नहीं, सिर्फ़ वर्तमान के
साथ समझौता, जहाँ
अतीत और
भविष्य
की बातें जीवाश्म से अधिक कुछ -
भी नहीं, उन धुंधभरे गुमशुदा
पृष्ठों में हांफ उठते हैं कुछ
निःशब्द चेहरे, कुछ
कुछ फेर लेते
हैं नज़र
अजनबी की तरह, जहाँ खुल जाती
हैं अपने आप आत्मीयता की
गिरह, उन्हें मालूम है
उन्हें उठाने के
लिए कोई
अर्जुन,
कोई मसीहा न आएगा, उम्र भर वो
सिर्फ करते हैं प्रतीक्षा किसी
उत्तरायण का - -
* *
- - शांतनु सान्याल
27 सितंबर, 2020
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बहुत सुन्दर।
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पुत्री दिवस की बधाई हो।
असंख्य धन्यवाद - - नमन सह। पुत्री दिवस की शुभकामनाएं आप को भी।
हटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
हटाएंअद्धभुत लेखम
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
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