रुकती नहीं जीवन की गति, चाहे
रुक जाए दीवार घड़ी, रुकता
नहीं पथिक प्राण, उसे पाना
है गुमशुदा तूफ़ान, मेघ
थे बंजारे उठा ले
गए जल ख़ेमे,
फिर वही
अंतर
की
तृष्णा, वक्षस्थल में नहीं कोई - -
मरूद्यान, बिखरे हुए हैं
काल के कपाल में
अनगिनत अस्थि
पिंजर, पथ
प्रदर्शक
के
पास नहीं कोई हिसाब, कौन - -
करेगा उनका अनुसंधान,
कितने कारवां गुज़रे,
कितने तारे
टूटे और
बिखरे, नभ नहीं उदास, पृथ्वी
भी है अपनी जगह पूर्ववत
विद्यमान, कुरुसभा हो
या लोकसभा, वही
वीभत्स अट्टहास,
जीवित हो
या मृत
उनके लिए सभी एक समान ।
* *
- - शांतनु सान्याल
15 सितंबर, 2020
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जवाब देंहटाएंआपका आभार, नमन सह।
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