क्या नहीं मेरे पास, कभी ख़ाली
जेब, कभी आलिंगनबद्ध
नील आकाश, दिवार
से पलस्तर का
खिसकना
है जारी,
आईने को हटा लें ज़रा कुछ चेहरे
पे रौनक आए, सिमटे हुए
हैं रिश्तों के शब्दकोष,
कोई आवर्धक
का ऐनक
लाए।
टूटी हुई आराम कुर्सी, कुछ सूखे
हुए गमलों के पौधे, पथराई
आँखों का मरुस्थल सभी
मुंतज़िर हैं कहीं से
मेघमास लौट
आएं।
मुझे कुछ भी नहीं चाहिए उन
से, कुछ मुस्कुराहटों के
झुरमुट, अहाते से
झांकते पहली
किरण के
शिशु,
जो मुझ से हैं सदियों से वाबस्ता
काश, वो फिर मेरे पास लौट
आएं।
* *
- - शांतनु सान्याल
18 सितंबर, 2020
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सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०९-२०२०) को 'अच्छा आदम' (चर्चा अंक-३८२९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
आपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं