उस अदृश्य प्रवाह में हैं छुपा त्रिकाल
का अख़बार, जो पढ़ ले वही हो ले
त्रिवेणी पार, उस त्रिकोण के
मध्य बिंदू में है कहीं
गूढ़ अभिधान,
जो चुन
ले
सठिक शब्द वही बन जाए प्रकृत -
रचनाकार। अंतर्मन छुपाए
बहुआयामी दर्पण, वही
महत, जो कर पाए
आत्म मंथन,
अतल में
है
शाश्वत सत्य, और प्रचुर कालकूट
भी, सुधा पान की पंक्ति सदैव
अशेष, नीलकंठ का अभाव
चिरंतन।
* *
- - शांतनु सान्याल
20 सितंबर, 2020
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गूढ़ भावाभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 20 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंशब्द विहीन हूँ, प्रशंसा क्या करूँ। श्रेष्ठ रचना हेतु बधाई, साधुवाद।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंये रचनाकार का नया रूप है।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार।
पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर
तहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
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