उस आर्द्रा नक्षत्र के, गाढ़
तमस वर्षा की रात में,
तुमने दिया था मुझे
अभयदान, मैंने
चाहा था
सिर्फ
कुछ प्रहरों का आश्रय, ये
जान कर भी कि मैं हूँ
एक शत्रु देश का
पलातक
सैनिक,
रुधिर झरित बाहु पर - -
तुमने बाँधा था
विश्वास का
छिन्न
आँचल, उस करुणाधारा
में परितृप्त हुआ
आहत देह
प्राण,
समवेत कण्ठों से उठा - -
तुम पर देश द्रोह का
अभियोग, क्रोधित
था सम्पूर्ण
बुद्ध -
विहार, संघ प्रमुख ने - -
दिया तुम्हें मृत्यु
का उपहार,
तुम्हारे
दो प्राञ्जल नेत्रों में था
मुक्ति द्वार, मैंने
किया मुक्ति -
स्नान,
चैत्य
प्रांगण में थी अपार - -
भीड़, लांछित,
अपमानित
चेहरे में
थी
लेकिन तेजस्विनी हंसी,
और हाथों में विष पात्र,
तुमने कहा ये नहीं
अवसान, हे !
तथागत
मानवता के लिए पुनः
प्रस्तुत होगा मेरा
बलिदान - -
* *
- - शांतनु सान्याल
22 सितंबर, 2020
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सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
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