कोई नहीं रहता इस नाम का यहाँ,
ये कहते हुए दरवाज़ा बंद हो
गया, कितनी सहजता
से, किसी ने मुझे
बैरंग पत्र
बना
दिया, मैं कल तक था किसी के -
लिए, एक सप्तरंगी जीवंत
आदमी, मौसम क्या
बदला, किसी ने
मुझे श्वेत -
श्याम
चित्र बना दिया, पल भर में एक
विस्मृत मित्र बना दिया।
बहुत नज़दीक से
देखा है तुम्हें,
अहाते
में
उतरने वाली नरम धूप, गगन -
चुंबी इमारतों से आख़िर
तुमने भी कर ही
लिया थक -
हार
कर समझौता, सरीसृपों के साथ
शायद तुम्हारा भी हो चुका
है देह का आदान -
प्रदान, अब
तुम हो
उभयचर इंसान, तुम्हारे लिए हर
चीज़ में है तिज़ारत का न्योता,
आख़िर तुमने भी कर
ही लिया थक -
हार कर
समझौता - -
* *
- - शांतनु सान्याल
ये कहते हुए दरवाज़ा बंद हो
गया, कितनी सहजता
से, किसी ने मुझे
बैरंग पत्र
बना
दिया, मैं कल तक था किसी के -
लिए, एक सप्तरंगी जीवंत
आदमी, मौसम क्या
बदला, किसी ने
मुझे श्वेत -
श्याम
चित्र बना दिया, पल भर में एक
विस्मृत मित्र बना दिया।
बहुत नज़दीक से
देखा है तुम्हें,
अहाते
में
उतरने वाली नरम धूप, गगन -
चुंबी इमारतों से आख़िर
तुमने भी कर ही
लिया थक -
हार
कर समझौता, सरीसृपों के साथ
शायद तुम्हारा भी हो चुका
है देह का आदान -
प्रदान, अब
तुम हो
उभयचर इंसान, तुम्हारे लिए हर
चीज़ में है तिज़ारत का न्योता,
आख़िर तुमने भी कर
ही लिया थक -
हार कर
समझौता - -
* *
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंआपका आभार, नमन सह।
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