11 सितंबर, 2020

अविभावक की तलाश - -

कोई इस राज्य का बेटा कोई उस
प्रान्त की बेटी, नि:संतान
सा लगे है क्यों देश
मेरा, इतनी
आत्मीयता
पहले
तो देखी नहीं, मैं भिन्न भाषी हूँ -
लिहाज़ा मुझे असमय कोई
अन्न नहीं देगा, मेरे
माथे में लिखा
है प्रवासी
होने
का मुहर, इतनी भारतीयता पहले
तो देखी नहीं, इतनी आत्मीयता
पहले तो देखी नहीं। न जाने
किन क्षितिजों को छूना
चाहते हैं लोग, यहाँ
दो वक़्त की
चिंता
से आगे नज़र जाती नहीं, न जाने
किस अंधी सुई में रेशमी धागा
पिरोना चाहते हैं लोग, न
जाने किन क्षितिजों
को छूना चाहते
हैं लोग।

* *
- - शांतनु सान्याल

10 टिप्‍पणियां:


  1. हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    13/09/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (13-09-2020) को    "सफ़ेदपोशों के नाम बंद लिफ़ाफ़े में क्यों"   (चर्चा अंक-3823)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    जवाब देंहटाएं

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