11 सितंबर, 2020

स्वप्न अनुधावन - -

मैं उनके पीछे नहीं दौड़ता या
यूँ कह लीजिए अब दौड़ने
की चाहत ही न रही,
जो कुछ है मेरे
पास बस
वही
सुबह तक रहे तो काफ़ी है, घर
हो या मेरा अस्तित्व, दोनों
ही महत्वहीन हैं, मेरा
शहर है आईना -
नगर, लेकिन
चेहरे बिंब -
विहीन
हैं ।
मैं नहीं देखना चाहता सपनों का
बाइस्कोप, वो बेकार ही मेरा
करते हैं अनुधावन, वो
जाएं नीलकण्ठ की
तलाश में हमें
करना है
हर
हाल में रावण दहन, सपनों से
कहें न करें हमारा बारम्बार
अनुधावन ।
* *
- - शांतनु सान्याल







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