29 सितंबर, 2020

अनसुलझे जीवन के समीकरण - -

यद्यपि कई पहेलियाँ अनसुलझी ही
रहीं, जज़्बाती परतों के नीचे, कई
रहस्य अपने आप ही रास्ता
तलाश कर गए दूर किसी
चिंगारियों के स्वर्ग !
लेकिन तुम्हारा
निःशर्त
प्रणय
ने आख़िर बदल ही दिया मानव - -
निर्मित सभी परिभाषाएँ, और
यही वजह है कि पृथ्वी,
पहले से भी कहीं
अधिक, अब
ख़ूबसूरत
लगती है, कुछ रिश्तों का मौन सौंदर्य
होता है सहस्त्र प्रणय गीत के
बराबर, कुछ अनुराग
कभी सूखते नहीं,
मृत्यु के बाद
भी रहता
है
उनका अस्तित्व, कभी भोर की कच्ची
धूप की दस्तक लिए, कभी ओस
कणों में इंद्रधनुष का बिम्ब
समेटे हुए, और कभी
अशरीर हो कर
भी रहता
है वो
हमारे अनुभूतियों के बहुत अंदर, किसी
अरण्य पुष्प की महक लिए, वो
उतरता है निःशब्द दिल की
असीम गहराइयों में,
अपने आप में
व्यतिक्रम
लिए
हुए वो रहता हमारे साथ हमेशा के लिए,
अनसुलझे, किसी समीकरण की
तरह - - -
* *
- - शांतनु सान्याल
 



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