11 जुलाई, 2021

सुबह की आहट - -

निःसीम शून्यता के बाद भी तुम्हें
पाने की है चाहत बाक़ी, अंतहीन
दीर्घश्वास है ज़िन्दगी, फिर
भी अलविदा कैसे कहें,
इस मौन संवाद में
हैं अनगिनत
लहरों के
ध्वनि,
ईशान कोणीय मेघों का जमाव है
ज़रूरी, अभी अभी निशि पुष्पों
के वृन्त हैं खुले, गंध कोषों
को कुछ और उभरने दो,
अभी तो है केवल
निशीथ प्रहर,
अभी दीर्घ
रात को  
दूर
तक है चलना, कुछ और दुःखों -
को है चुपचाप सहना, कुछ
और तेरे सीने में है राहत
बाक़ी, निःसीम
शून्यता के
बाद भी
तुम्हें
पाने की है चाहत बाक़ी। न जाने
कहाँ बरस जाएं जुनूं के उस
पार ये आवारा बादल,
वो नहीं जानते
मरुधरा का
ठिकाना,
ताहम
ना
उम्मीद नहीं होती ये ज़िन्दगी, यूँ
ही लगा रहता है धुंध का आना
जाना, डूब के उभरने की
ख़्वाहिश कभी ख़त्म
होती नहीं, रात
ढलने को
है ज़रा,
अभी
सुबह की है आहट बाक़ी, निःसीम
शून्यता के बाद भी तुम्हें पाने
की है चाहत
बाक़ी।  

* *
- - शांतनु सान्याल
 






 
 
 


10 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (12-07-2021 ) को 'मानसून जो अब तक दिल्ली नहीं पहुँचा है' (चर्चा अंक 4123) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
  2. रात
    ढलने को
    है ज़रा,
    अभी
    सुबह की है आहट बाक़ी, निःसीम
    शून्यता के बाद भी तुम्हें पाने
    की है चाहत
    बाक़ी।

    सुंदर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं

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