03 जुलाई, 2021

जलमग्न प्रासाद - -

निमज्जित वो सभी जलपोत, जो कभी
उभर न पाएंगे, उसी के आसपास
कहीं बसती हैं रूपकथाओं की
दुनिया, कालांतर में कुछ
अभिलाष शैवाल हो
गए, कुछ ख़्वाब
बंद कमरों
के जाल
हो
गए, देर तक उस गहराई में, मेरे अपने
भी ठहर न पाएंगे, निमज्जित वो
सभी जलपोत, जो कभी उभर
न पाएंगे। आग्नेयगिरि
और सागर के मध्य,
वाष्पित धुंध के
सिवा कुछ
भी नहीं
होता,
ताहम डूबने की चाहत कभी नहीं रूकती,
ज़रूरी नहीं, सभी कश्तियों को एक
ठिकाना नसीब हो, कतिपय
रूह हैं कालजयी तैराक,
ज़िन्दगी जिनके
हथेलियों के
क़रीब
हो,
बाक़ी सभी किनारे की लहर की तरह लौट
कर फिर उधर न जाएंगे, निमज्जित
वो सभी जलपोत, जो कभी उभर
न पाएंगे।

* *
- - शांतनु सान्याल





 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रयोग! रचना की सृजनात्मकता अद्भुत है।
    डूबने की चाहत कभी नहीं रूकती,
    ज़रूरी नहीं, सभी कश्तियों को एक
    ठिकाना नसीब हो, कतिपय
    रूह हैं कालजयी तैराक,
    ज़िन्दगी जिनके
    हथेलियों के
    क़रीब
    हो,
    साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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  2. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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  3. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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