10 जुलाई, 2021

अंतर्लीन बोध - -

वो सर्दियों की नरम धूप, जो बह गई
थीं कुहासे के स्रोत में, तुमने फिर
स्पर्श किया है अहाते की सर
ज़मीं, फिर जी उठे हैं मृत
सागर की लहरें एक
नए आत्मबोध
में, वो
सर्दियों की नरम धूप, जो बह गई थीं
कुहासे के स्रोत में। मैं आज भी
हूँ मुंतज़िर उसी जगह जहाँ
पुरातन हिमनद का था
उद्गम, जहाँ कभी
हम मिले थे,
क्या तुम
आज
भी हो उन्मत्त, अमरत्व की खोज में,
वो सर्दियों की नरम धूप, जो बह
गई थीं कुहासे के स्रोत में।
झर जाएंगे परत दर
परत दरख़्तों के
सभी धूसर
लिबास,
फिर भी न मर पाएंगे अंदर के हरित
एहसास, तुम्हारे छुअन में छुपा
है कहीं एक सुधामय प्यास,
कई जनम लग जाएंगे
उसे समझने के
शोध में,
वो
सर्दियों की नरम धूप, जो बह गई थीं
कुहासे के स्रोत में।

* *
- - शांतनु सान्याल  
 
 


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अमरत्व की खोज में सुन्दर सृजन!!

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