31 जुलाई, 2021

मुंतज़िर शाम - -

उड़ सको, तो उड़ जाओ पिंजरा बंद
कभी न था, आँख के पैमाइश
से न देखो आसमां का
रंग, दिल की
अथाह
गहराइयों में, कोई तुम सा हसीं न
था। जब तलक तलातुम से न
हो मुलाक़ात, राज़ ए
समंदर रहता है
ग़ैर क़ाबिल
ए हल,
मुद्दतों बाद जब आईने को देखा
तो पाया, मुझसे बड़ा कोई
अजनबी न था, उड़
सको, तो उड़
जाओ
पिंजरा बंद कभी न था। निःशर्त
इस जहाँ में कोई भी लेन -
देन नहीं होता, सब
लफ़्ज़ों की है
जादूगरी
कोई
किसी के लिए बेवजह बेचैन नहीं
होता, कहने को वो मेरा था
हमनफ़स, लेकिन उसे
मुझ पर भी यक़ीं
न था, उड़
सको,
तो उड़ जाओ पिंजरा बंद कभी -
न था।
* *
- - शांतनु सान्याल

10 टिप्‍पणियां:

  1. उड़
    सको,
    तो उड़ जाओ पिंजरा बंद कभी -
    न था।
    आपकी रचनाओं में कमाल की ताजगी होती है।।।।। बेहतरीन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय शान्तनु जी।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 01 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सब लफ़्ज़ों की है जादूगरी, कोई किसी के लिए बेवजह बेचैन नहीं होता। बहुत ख़ूब शांतनु जी!

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