तमाम रात होती रही बरसात, सारा
मोहल्ला दरवाज़ों पर कड़ी लगाए
सोता रहा, जाने कौन था वो,
जो रात भर रुंधी
आवाज़ से
मुझे
बुलाता रहा, कपाट के ठीक उस पार
उड़ान पुल के नीचे है, स्तम्भ
विहीन घरों का शहर,
कुछ समय से
पहले,
ज़बरन बुढ़ाए गए चेहरे, कुछ खिलने
से पूर्व मुरझाए हुए बचपन, मैं
चाह कर भी न खोल पाया
अंतर द्वार, रात भर
दस्तक, न जाने
क्या, बड़ -
बड़ाता
रहा, जाने कौन था वो, जो रात भर
रुंधी आवाज़ से मुझे बुलाता रहा।
अस्तित्व और बिंब के मध्य
का दूरत्व, मुझे अपने
आप से बाहर
निकलने
नहीं
देता, उन रिक्त स्थानों पर हैं मोह
के नाज़ुक धागे, जिन्हें तोड़ने
का साहस मुझ में नहीं,
दर्द लिए सीने में,
यूँ ही ख़ामोश
करहाता
रहा,
बारिश कब थमी मुझे कुछ भी ख़बर
नहीं, शायद, गहरी नींद में
बाक़ी पहर, मैं सोता
रहा, रात की
बात को
यूँ ही
भुलाता रहा, जाने कौन था वो, जो
रात भर रुंधी आवाज़ से
मुझे बुलाता
रहा।
* *
- - शांतनु सान्याल
01 अगस्त, 2021
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (02-08-2021 ) को भारत की बेटी पी.वी.सिंधु ने बैडमिंटन (महिला वर्ग ) में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। (चर्चा अंक 4144) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअस्तित्व और बिंब के मध्य
जवाब देंहटाएंका दूरत्व, मुझे अपने
आप से बाहर
निकलने
नहीं
देता, उन रिक्त स्थानों पर हैं मोह
के नाज़ुक धागे...
हृदयस्पर्शी सृजन । सादर वन्दे शांतनु सर 🙏
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअस्तित्व और बिंब के मध्य
जवाब देंहटाएंका दूरत्व, मुझे अपने
आप से बाहर
निकलने
नहीं
देता, उन रिक्त स्थानों पर हैं मोह
के नाज़ुक धागे, जिन्हें तोड़ने
का साहस मुझ में नहीं,
दर्द लिए सीने में,
यूँ ही ख़ामोश
करहाता
रहा,.... भावों भरी, मर्म को छूती सुंदर रचना,
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंमोह ही तो हमें जागने नहीं देता, पीड़ा के स्वर भी खोल नहीं पाते सदियों कि नींद
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंहृदय स्पर्शी भाव! संवेदना है पर सक्रियता नहीं है बस यहीं तो हम असंवेदनशील हो जाते हैं न जाने किस मोह में।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गहन भाव रचना ।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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