बहुत कुछ कहने को रहता है सब
कुछ भीग जाने के बाद, एक
सोंधा सा एहसास बना
रहता है देर तक
वर्षा थम
जाने
के बाद। भीगी हवाओं में तैरते हैं
मेघ कणों के शब्द, कोहरे
की तरह बातें करती
हैं तब अंदर की
स्तब्धता,
वो
चाहती हैं बहुत कुछ उजागर - -
करना, वो ढूंढती हैं खोया
हुआ शैशव, नदी
पहाड़ का
खेल,
अतीत के ज़र्द बटुए से झांकती - -
रहती है अक्सर आज भी
मख़मली मुग्धता।
अवाक ह्रदय
देखता
रहता है उन क्षणों में महीन कपास
की तरह गिरते हुए तुषार
कणिका, वो छूना
चाहता है
उन्हें
नज़दीक से, हथेलियों में रह जाते
हैं कुछ सजल माटी गंध,
ज़िन्दगी उन लम्हों
में लगती है
निर्बंध
कोई चार पंक्तियों की क्षणिका - -
* *
- - शांतनु सान्याल
07 अगस्त, 2021
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 08 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-8-21) को "रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन"(चर्चा अंक- 4150) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंचाहता है
जवाब देंहटाएंउन्हें
नज़दीक से, हथेलियों में रह जाते
हैं कुछ सजल माटी गंध,
ज़िन्दगी उन लम्हों
में लगती है
निर्बंध
कोई चार पंक्तियों की क्षणिका - बाहित सही सटीक पंक्तियां,सुंदर रचना।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंअतीत के ज़र्द बटुए से झांकती - -
जवाब देंहटाएंरहती है अक्सर आज भी
मख़मली मुग्धता।
अवाक ह्रदय
देखता
रहता है उन क्षणों में महीन कपास
की तरह गिरते हुए तुषार
कणिका, वो छूना
चाहता है
प्रत्येक पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर और भावात्मक है!
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं"अतीत के ज़र्द बटुए से झांकती - -
जवाब देंहटाएंरहती है अक्सर आज भी
मख़मली मुग्धता।"...
और
"ज़िन्दगी उन लम्हों
में लगती है
निर्बंध
कोई चार पंक्तियों की क्षणिका - -" इन दो अतुल्य बिम्बों से एक संवेदनशीलता से भरे शब्दचित्रण को बख़ूबी उकेरा है आपने .. दोनों बिम्ब अनूठे लगे .. बस यूँ ही ...
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंनज़दीक से, हथेलियों में रह जाते
जवाब देंहटाएंहैं कुछ सजल माटी गंध,
ज़िन्दगी उन लम्हों
में लगती है
निर्बंध
कोई चार पंक्तियों की क्षणिका - -अनुपम रचना है खूब बधाई...
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबारिश के बाद का सोंधापन बसा है इस रचना में ।।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंभावों की अथाह गहराई लिए बेहतरीन सृजन शब्द-शब्द हृदयग्राही।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार सर।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत बढियां सृजन
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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