उन्मेषित चाँदनी रात की चाहत में
ज़रूरी है, गुज़रना नागकणि के
राहों से, उस अधर पार है
सत या असत की
बूंदें, किसे क्या
ख़बर, रोक
पाना
है बहुत कठिन देह - प्राण को कांटे
दार चाहों से, ज़रूरी है, गुज़रना
नागकणि के राहों से। वो
कालिंदी तट हो या
सुदूर नील नद,
हर युग में,
होते हैं
विष पूर्ण सरीसृप, और त्राण हेतु -
हर युग में होते हैं कहीं न कहीं
महत् प्राण के अवतरण,
बुझते नहीं जीवन
के आलोक
स्तम्भ,
खुले
रहते हैं, सभी विकल्प द्वार गहन
समुद्र के बंदरगाहों से, ज़रूरी है,
गुज़रना नागकणि के
राहों से।
* *
- - शांतनु सान्याल
24 अगस्त, 2021
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जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबुझते नहीं जीवन
जवाब देंहटाएंके आलोक
स्तम्भ,
खुले
रहते हैं, सभी विकल्प द्वार गहन
समुद्र के बंदरगाहों से, ज़रूरी है,
गुज़रना नागकणि के
राहों से।...सुंदर भावों भरे अहसासों का सृजन।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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