कितनी सहजता से हम कह जाते हैं जो
गुज़र गया सो गुज़र गया, फिर भी
रात गहराते हम टटोलते हैं
गुज़रे हुए लम्हात,
स्मृति की
झोली
यूँ ही निष्क्रिय पड़ी रहती है बंद आंख
के किनारे, कांच की चुभन लिए
उंगलियों में, ज़िन्दगी
करवट बदलती
है सारी
रात,
रात गहराते हम टटोलते हैं गुज़रे हुए
लम्हात। किसे फ़ुर्सत है जो सोचे
किसी सजल आंख की आत्म
कहानी, अपना अपना
हिस्सा है सहर्ष
स्वीकार
करें,
साहसी सुबह की नाज़ुक धूप दरवाज़े
पर दे रही है दस्तक, बासी हो
कर भी ताज़ा है डेहरी पर
पड़ा हुआ अख़बार,
बस बाक़ी तो
है आनी
जानी,
इस से बड़ा सुख क्या होगा, सब कुछ
लुटने के बाद भी हे जिजीविषा
तुम आज भी हो मेरे साथ,
रात गहराते हम
टटोलते हैं
गुज़रे
हुए
लम्हात, ताउम्र नहीं भूल पाते हैं हम
गुज़रनेवाली बात।
* *
- - शांतनु सान्याल
22 अगस्त, 2021
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (23-08-2021 ) को 'कल सावन गया आज से भादों मास का आरंभ' (चर्चा अंक 4165) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंजीवन और यादें ,बहुत सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत खूब। आनंद आ गया। ऐसी रचनाएं कम ही पढने को मिलती हैं।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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