हर एक व्यक्ति कहीं न कहीं लड़ता
है अपने अंदर के एकांतवास से,
ये और बात है कि ओठों
पर मुहुर्मुहु हंसी
छुपा जाती
है दिल
की
बात अपने आसपास से, दरअसल -
हमें पता है कि कोई साथ नहीं
देता जब कभी घिर आता
है गाढ़ अंधकार, तब
अंतर्मन का दीप
अकेला ही
खोल
जाता है सभी बंद द्वार, हम पुनः -
जी उठते हैं अंतःस्थल के मौन
विश्वास से, हर एक व्यक्ति
कहीं न कहीं लड़ता है
अपने अंदर के
एकांतवास
से। ये
वही
मंत्र है जो मुरझाने नहीं देता हमारे
भीतर के चिर श्यामल अंतः -
करण को, रोकता है हर
हाल में बढ़ते हुए
बंजरपन
को,
संतप्त वसुधा करती है इक रूहानी
अनुबंध अंतहीन आकाश से,
हर एक व्यक्ति कहीं
न कहीं लड़ता
है अपने
अंदर
के एकांतवास से, फिर भी ज़िन्दगी
बंधी रहती है हर किसी के
आख़री सांस से।
* *
- - शांतनु सान्याल
17 अगस्त, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
वाह,बिल्कुल सही लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंखुद से खुद का विरोध, व्यथित मन पर चेहरे पर हंसी....! मानव भी क्या चीज है
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 18 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-08-2021) को चर्चा मंच "माँ मेरे आस-पास रहती है" (चर्चा अंक-४१६०) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंयथार्थ की गहराई में गोते लगाती लाजवाब अभिव्यक्ति आदरणीय सर।
हर मन की व्यथा की गूंज है सृजन।
सादर नमस्कार
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं