हर एक व्यक्ति कहीं न कहीं लड़ता
है अपने अंदर के एकांतवास से,
ये और बात है कि ओठों
पर मुहुर्मुहु हंसी
छुपा जाती
है दिल
की
बात अपने आसपास से, दरअसल -
हमें पता है कि कोई साथ नहीं
देता जब कभी घिर आता
है गाढ़ अंधकार, तब
अंतर्मन का दीप
अकेला ही
खोल
जाता है सभी बंद द्वार, हम पुनः -
जी उठते हैं अंतःस्थल के मौन
विश्वास से, हर एक व्यक्ति
कहीं न कहीं लड़ता है
अपने अंदर के
एकांतवास
से। ये
वही
मंत्र है जो मुरझाने नहीं देता हमारे
भीतर के चिर श्यामल अंतः -
करण को, रोकता है हर
हाल में बढ़ते हुए
बंजरपन
को,
संतप्त वसुधा करती है इक रूहानी
अनुबंध अंतहीन आकाश से,
हर एक व्यक्ति कहीं
न कहीं लड़ता
है अपने
अंदर
के एकांतवास से, फिर भी ज़िन्दगी
बंधी रहती है हर किसी के
आख़री सांस से।
* *
- - शांतनु सान्याल
वाह,बिल्कुल सही लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंखुद से खुद का विरोध, व्यथित मन पर चेहरे पर हंसी....! मानव भी क्या चीज है
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 18 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-08-2021) को चर्चा मंच "माँ मेरे आस-पास रहती है" (चर्चा अंक-४१६०) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंयथार्थ की गहराई में गोते लगाती लाजवाब अभिव्यक्ति आदरणीय सर।
हर मन की व्यथा की गूंज है सृजन।
सादर नमस्कार
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं