कोई नहीं पढ़ना चाहता, किसी का
जीवन-वृत्तांत, पड़े रहते हैं
असंख्य पाती पुराने
लिफ़ाफ़े के
अंदर,
उम्र भर हम तलाश करते हैं एक
अदद वाचक, जो थाह पाए
अंतःकरण की गहराई,
बहुत मुश्किल है
मिलना यहाँ
निःस्वार्थ
कोई
परछाई, लवणीय हास लिए दूर
से तकता है नील समंदर, पड़े
रहते हैं असंख्य पाती
पुराने लिफ़ाफ़े के
अंदर। पुष्प
और
भ्रमर के मध्य घूमता रहता है
मधु चक्र, यूँ ही आते जाते
रहते हैं सदा ऋतुओं
के प्रेम पत्र, हर
पल सृष्टि
गढ़ती
है
जीवन के अपरिभाषित रूप -
कदाचित प्रकृति जानती
हो, अलौकिक कोई
जंतर मंतर,
पड़े रहते
हैं
असंख्य पाती पुराने लिफ़ाफ़े
के अंदर - -
* *
- - शांतनु सान्याल
25 अगस्त, 2021
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जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंउत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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