12 अगस्त, 2021

विचाराधीन निर्णय - -

अप्रत्याशित पलों में बुझ जाते हैं झाड़ -
फ़ानूस, समय खेलता है हमारे
साथ अंधेरे में शतरंज,
एक रात की है
बाज़ी,
बिखरे पड़े हैं चारों तरफ़ कांच के मोहरे,
सुबह से पहले हम उठाते हैं बिसात,
बहुत कुछ ज़िन्दगी में रहता
है अनिर्णीत, काल पुरुष
की छाया से मुक्त
हो कर हम
लड़ते
है
नित नए जंग, समय खेलता है हमारे
साथ अंधेरे में शतरंज। बाढ़ का
पानी, उतरते ही लिख जाता
है किनारे की रेत पर
नदी की आत्म -
कथा, धूप
की
तरह जिजीविषा मेरी, थामे रखती है
शून्य आँचल तुम्हारा, मैं भूल
जाता हूँ उम्र भर की सब
मूक व्यथा, ये जान
कर भी मेरी
चाहत
कभी ख़त्म नहीं होती कि हर शख़्स
को एक दिन जाना है निस्संग,
समय खेलता है हमारे
साथ अंधेरे में
शतरंज।
 * *
- - शांतनु सान्याल

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 12 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सही कहा आपने, जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं होता। सुंदर सृजन।

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  3. सार्थक रचना यथार्थ बयान करता।
    सार्थक सृजन।

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  4. "समय खेलता है हमारे
    साथ अंधेरे में
    शतरंज।" - सहमत आपकी बातों से .. पर भूले से समय उजाले में खेल भी ले तो, तब भी हम अँधेरे में ही होते हैं हर पल, हर क्षण .. शायद ...

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  5. जीवन कभी हार कभी जीत | गहन अभिव्यक्ति |

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